Tuesday, December 13, 2011

!!!! मायाजाल !!!


पाजेब तो है पांव में , झनकार नहीं है
रिश्तों का दिखावा है महज, प्यार नहीं है।

इस दौर में हुआ है, तरक्की का हाल ये
गलती पर अपनी कोई, शर्मसार नहीं है।

मिट्टी में जिसका, खून-पसीना हुआ गुलाब
वो आज भी बहार का, हकदार नहीं है।

हम रोज कुआं खोद कर, अपनी बुझाएं प्यास
ये दिल किसी मौसम का, तलबगार नहीं है।

सासों में सियासत की महक, तुझको मुबारक
हाथों में हुनर अपने, पुरस्कार नहीं है।

वैसे तो बड़ा बहस में, तहजीब का लिबास
आंचल मगर बदन पर, महकदार नहीं है।

कलियों के तड़पने की, खबर फैल तो गई
मधुकर चमन में कोई, सोगवार नहीं है।

Monday, December 5, 2011

मैं इंसान हूँ



मैं इंसान हूँ...

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मैं, एक शब्द नही
एहसास हूँ
अरमान हूँ,
साँसे भरती हाड़-मांस की
जीवित इंसान हूँ|

दर्द में आँसू निकलते हैं
काटो तो रक्त बहता है,
ठोकर लगे तो पीड़ा होती है
दगा मिले तो दिल तड़पता है|

कुछ बंधन बन गए
कुछ चारदीवारी बन गई,
पर ख़ुद में
मैं अब भी जी रही|

कई चेहरे ओढ़ लिए
कुछ दुनिया पहन ली,
पर कुछ बचपन ले
मैं आज भी जी रही|

मेरे सपने
आज भी मचलते हैं,
मेरे ज़ज्बात
मुझसे अब
रिहाई माँगते हैं|

कब, कहाँ, कैसे से कुछ प्रश्न
यूँ हीं पनपते हैं
और ये प्रश्न
मेरी ज़िन्दगी उलझाते हैं|

हाँ, मैं
सिर्फ एक शब्द नही
एहसास हूँ
अरमान हूँ,
साँसे भरती हाड़-मांस की
जीवित इंसान हूँ|