
मैं इंसान हूँ...
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मैं, एक शब्द नही
एहसास हूँ
अरमान हूँ,
साँसे भरती हाड़-मांस की
जीवित इंसान हूँ|
दर्द में आँसू निकलते हैं
काटो तो रक्त बहता है,
ठोकर लगे तो पीड़ा होती है
दगा मिले तो दिल तड़पता है|
कुछ बंधन बन गए
कुछ चारदीवारी बन गई,
पर ख़ुद में
मैं अब भी जी रही|
कई चेहरे ओढ़ लिए
कुछ दुनिया पहन ली,
पर कुछ बचपन ले
मैं आज भी जी रही|
मेरे सपने
आज भी मचलते हैं,
मेरे ज़ज्बात
मुझसे अब
रिहाई माँगते हैं|
कब, कहाँ, कैसे से कुछ प्रश्न
यूँ हीं पनपते हैं
और ये प्रश्न
मेरी ज़िन्दगी उलझाते हैं|
हाँ, मैं
सिर्फ एक शब्द नही
एहसास हूँ
अरमान हूँ,
साँसे भरती हाड़-मांस की
जीवित इंसान हूँ|
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