Saturday, August 3, 2013

बदबख्त ‘राय’ सिर्फ तू रह गया

बदबख्त ‘राय’ सिर्फ तू रह गया
तेरी ज़िंदगी में कितने मुल्क आज़ाद हुए,
कितनी नई कौमें ,मुल्क अस्तित्व में आए |


क्रांति के दौर में ,
क्लर्क ,मंत्री ,राजदूत,सिपाही-जरनैल करनैल बन गए |
बदबख्त तेरी इतनी उम्र गुजर गई ,
तुझे ख़बर न हुई ,
दुनिया कहाँ से कहाँ पहुँच गई |
आखिर तू इतना अरसा
क्या करता रहा है ?
इस ज़माने में भी भूखा सोता रहा है ?
ठेके ,परमिट ,लाईसेंस नीलामी
लॉटरी ,एलाटमेंट वजीफे के दौर में ,
पता नहीं तू किस खोह में छिपा रह गया |
आख़िरी आदमी भी सुकून की नींद सोया,
बदबख्त ‘राय’ सिर्फ अपनी कमजोरियों के कारण ,
सिर्फ रोता ही रह गया |