बदबख्त ‘राय’ सिर्फ तू रह
गया
तेरी ज़िंदगी में कितने
मुल्क आज़ाद हुए,
कितनी नई कौमें ,मुल्क
अस्तित्व में आए |
क्रांति के दौर में ,
क्लर्क ,मंत्री
,राजदूत,सिपाही-जरनैल करनैल बन गए |
बदबख्त तेरी इतनी उम्र
गुजर गई ,
तुझे ख़बर न हुई ,
दुनिया कहाँ से कहाँ
पहुँच गई |
आखिर तू इतना अरसा
क्या करता रहा है ?
इस ज़माने में भी भूखा
सोता रहा है ?
ठेके ,परमिट ,लाईसेंस
नीलामी
लॉटरी ,एलाटमेंट वजीफे के
दौर में ,
पता नहीं तू किस खोह में
छिपा रह गया |
आख़िरी आदमी भी सुकून की
नींद सोया,
बदबख्त ‘राय’ सिर्फ अपनी
कमजोरियों के कारण ,
सिर्फ रोता ही रह गया |

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