Thursday, December 4, 2014

तीर - लालटेन

      

           

                  तीर - लालटेन


बड़का-छोटका भाई में,
डील कोई करावल गईल,
तरकस में ना तीर अब,
लालटेन में रखावल गईल।

जनता बा कन्फयूज भईल,
कुछ उनका ना बुझाईल,
रहे जे बाड़का दुश्मन,
यार अब कहावल गईल।

पारा बनके चारा खा गईल
उ सरकार हटावल गईल,
चलाके ब्रहम तीर के
लालटेन के बुतावल गईल।

चोर डकईत के तमगा से
जिनका के तमगाावल गईल,
दस साल पानी पी पी के
जिनका के गरियावल गईल।

समय पड़ल त ओही चोर के
गरवा से लगावल गईल,
होला चोर चोर मौसेरा भाई,
दुनिया के बतावल गईल।

कहेे लव पुरबिया दुख से
एकर दुख ना कि गेठ जोरावल गईल,
दुख त एकर बा की,
जनता के फेर बुड़बक बनावल गईल।

- लव कान्त सिंह

Saturday, February 22, 2014

बंद पिंजरा

जो मिट्टी अब तक भूरी थी
वो अब लाल हो गयी
आज मैंने
क़त्ल किया है,
अपनी मुहब्बत से नहीं
तिजारत से भी नहीं
बस इतना कहा
मत उलझो मेरे ताने-बानों में, मत फँसो मेरे ज़ंजीरों में,
मत बनो कठपुतली मेरे सपनों की
आज़ाद कर दिया आसमान जैसे पिंजरे से
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