Saturday, January 16, 2010

डूबता सूरज बिम्ब

कांच चुभा
लहू गिरा जहा
वहा एक गुल खिला
सुर्ख लाल था उसका रंग
और पंखुडियां
सारी पारदर्शक
कांच के जैसी
=========
किनारे पर गिरी सीपियाँ
अन्थाग सागर समर्पित दोबारा
जब हम
वापस आये
उन में मोती हो
=========
डूबता सूरज बिम्ब
क्षितिज पे अपनी
छटाये छोडता जा रहा
उसके अस्तित्व का प्रमाण
ताकी कल फिर आना है
ये उसे याद रहे …

कुछ हो गया

ये क्या हुआ, कुछ हो गया है
बदली फिजा है, बदली है दुनिया
धुप में सर्दी, रातें हैं गर्म
ये क्या हुआ, कुछ हो गया है !

भूलने लगा हूँ मैं अब सब कुछ क्यूँ
नींद में भी क्यूँ चलने लगा हूँ
हर वक़्त खुद को तकने लगा
ये क्या हुआ, कुछ हो गया है !

हर वक़्त लगते हो साथ तुम क्यूँ
बंद आँखों को दिखते हो तुम क्यूँ
रोज सपनों में आते हो तुम क्यूँ
ये क्या हुआ, कुछ हो गया है !

बिन वजह में क्यूँ मुस्कुराता हूँ
सोचते सोचते क्यूँ हँसता हूँ
बैठे बैठे क्यूँ गुम होता हूँ
ये क्या हुआ, कुछ हो गया है !

जब से मिले तुम, बदली है ज़िन्दगी
हर ख़ुशी अब लगती है अपनी
जो ना सोचा था वो हुआ है
जाने क्यूँ हमारा मिलन हुआ
एक दूजे के हो गए अब हम
ये क्या हुआ, कुछ हो गया है !

Tuesday, January 12, 2010

हमारे समाज में सेक्स के बारे में या उससे संबंधित विषयों पर खुलकर बातचीत करना सामान्य रूप से अच्छा नहीं माना जाता। ऐसे वातावरण में पले-बढ़े अभिभावक भी अपने बच्चों से इस विषय पर बातचीत करने में कतराते हैं, जबकि यह आज के समय की माँग है। विद्यालयों में यौन-शिक्षा की आवश्यकता पर जो बल दिया जा रहा है, उसका प्रथम चरण घर में अभिभावकों द्वारा ही उठाया जाना चाहिये। किंतु होता यह है कि झिझक, शर्म और इस विषय पर बात करने पर होने वाली मानसिक असुविधा के चलते अधिकांश माँ-बाप इस बारे में कन्नी काट जाते हैं। उनका तर्क होता है कि समय आने पर बच्चे अपने आप सब जान जाते हैं। किंतु वे भूल जाते हैं कि आज के समय में बच्चों को यौन शिक्षा से वंचित रखना- उनके लिए कितना बड़ा खतरा मोल लेना है।

आवश्यक है कि अभिभावक अपने बच्चों के लिए ऐसा सहज वातावरण बनायें कि वे सभी तरह की (यौन संबंधी भी) जिज्ञासाएँ शांत करते हेतु उनके समक्ष अपने प्रश्न रख सकें। इस बारे में किये गये अध्ययन से पता चला है कि जिन बच्चों के अभिभावक उनसे खुलकर बातचीत करते हैं और उनकी बातें ध्यानपूर्वक सुनते हैं, ऐसे बच्चे ही सेक्स संबंधी बातें अपने अभिभावकों से कर पाते हैं। ऐसे बच्चे किशोरावस्था में यौन-खतरों से भी कम दो-चार होते हैं, बनिस्बत दूसरे बच्चों के।

अगर, बच्चों से इस संबंध में बातचीत करने में असुविधा महसूस हो रही हो तो इस संबंध में किया गया अध्ययन, विश्वसनीय दोस्तों अथवा चिकित्सक से की गई चर्चा इत्यादि काफी सहायक हो सकते हैं। इस विषय में जितना आपके ज्ञान में इज़ाफा होगा, उतनी ही सहजता से आप बच्चे से बात कर पायेंगे। अगर आप इस बारे में सहज नहीं हो पा रहे हैं तो इस स्थिति को भी बच्चे से छिपाइये मत, बल्कि कहा जा सकता है कि- `देखो! मेरे माता-पिता ने मुझसे कभी सेक्स के बारे में बातचीत नहीं की। शायद इसीलिए मैं भी सहज रूप से तुमसे इस बारे में बात नहीं कर पा रहा/रही हूँ। लेकिन मैं चाहता/चाहती हूँ कि हम इस बारे में बात करें, बल्कि सभी विषयों पर खुलकर बात करें। अत किसी भी प्रकार की जिज्ञासा हो तो बेझिझक मुझसे चर्चा की जा सकती है।'

इस संबंध में बच्चों से जितनी कम उम्र में बातचीत शुरू की जा सके- बेहतर है, और वह भी अत्यंत सहज रूप से और अधिक से अधिक जानकारी देने के हिसाब से। जैसे कि छोटे से बच्चे को जब बातचीत के माध्यम से शरीर के अन्य अंगों-नाक-कान-आँख इत्यादि की जानकारी दी जाती है तो उसी वक्त साथ-साथ उसके गुप्तांगों के बारे में भी जानकारी दे दी जानी चाहये। बच्चे को शरीर के सभी अंगों के वास्तविक नाम बताएँ। बच्चे की बढ़ती उम्र के साथ-साथ उसके शरीर में आने वाले सभी प्रकार के परिवर्तनों से भी उसे अवगत करवाते रहना चाहिये।

इस सबके बावजूद भी अगर आपका बच्चा इस संबंध में अपनी कौतूहल शांत करने के लिए आपके पास नहीं आता है तो बेहतर होगा कि कोई अच्छा-सा मौका देख कर आप ही शुरुआत कर दें। मसलन- अगर उसके किसी दोस्त की माँ गर्भवती है तो आप वहीं से शुरुआत कर सकती हैं- `तुमने देखा! राजू की मम्मी का पेट कितना फूल गया है, क्यूंकि उनके पेट में नन्हा-सा बेबी है। क्या तुम्हें पता है कि बेबी आंटी के पेट में कैसे गया?... '- बस इस तरह बात को आगे बढ़ाया जा सकता है।

आज की आवश्यकता है कि बच्चों को पशु-पक्षियों अथवा परियों इत्यादि की कहानियों के साथ-साथ जीवन से संबंधित तथ्यों से भी अवगत करवाया जाये। इस दिशा में जब हम बच्चों को यौन शिक्षा से जुड़े तथ्यों से अवगत करवाते हैं तो उन्हें यह भी समझाना होगा कि यौन संबंधों में एक-दूसरे की भलाई के बारे में सोचना, परवाह करना तथा उत्तरदायित्व निभाना जैसी बातों का कितना महत्व है? बच्चे से यौन संबंधों के भावनात्मक पहलू पर की गई बातचीत से मिली जानकारी के आधार पर वह भविष्य में सेक्स संबंधों से उत्पन्न किसी भी प्रकार की स्थिति या दबाव में सही निर्णय ले सकेगा।

बच्चों से सेक्स संबंधी बातचीत के दौरान, उन्हें उनकी उम्र के अनुसार जानकारी मुहैया करवानी चाहिये। मसलन 8 वर्षीय बच्चे को बढ़ती उम्र के साथ लड़के और लड़की में आने वाले अलग-अलग शारीरिक परिवर्तनों और कारणों को बताना चाहये कि शरीर में मौजूद हार्मोन्स के कारण ही लड़के और लड़की में अलग-अलग शारीरिक परिवर्तन होते हैं। इससे बच्चे, उम्र के साथ होने वाले शारीरिक परिवर्तनों से घबराएँगे नहीं और ना ही विचलित होंगे। विशेष रूप से किशोरावस्था में बच्चे को यौन क्रिया से जुड़े परिणामों और उत्तरदायित्वों का अहसास करवाना आवश्यक होता है। मसलन 11 से 12 वर्ष के बच्चों के साथ की जाने वाली बातचीत में अवांछित गर्भ और उससे बचाव जैसे मसलों को शामिल करना चाहिये। इसीप्रकार वर्तमान स्थिति के साथ-साथ भविष्य में होने वाले शारीरिक परिवर्तनों पर भी बच्चों के साथ बातचीत की जा सकती है। मसलन 8 वर्षीय बच्ची से मासिक धर्म के बारे में बातचीत की जा सकती है।

कई बार अभिभावक विपरीत सेक्स अर्थात पिता बेटी से तथा माँ बेटे से यौन शिक्षा संबंधी बातचीत करने में सकुचाते हैं। यह सही नहीं हैं। अपनी झिझक को अपने और बच्चे के आड़े मत आने दीजिये। इस बारे में कोई विशेष नियम नहीं है कि पिता ही बेटे से या माँ ही बेटी से इस विषय पर बातचीत करे। जैसा सुभीता हो या बच्चा जिसके अधिक करीब हो, वही उससे इस संबंध में बात कर सकता है।

जेंडर के साथ-साथ इस बात की भी चिंता मत कीजिये कि आप बच्चे की सभी जिज्ञासाओं को शांत कर पाएंगे या नहीं। इस विषय पर आप कितना जानते हैं, से महत्वपूर्ण है कि आप बच्चे को सवालों का जवाब किस तरह से दे रहे हैं? अगर आप बच्चे को यह समझाने में सफल हो जाते हैं कि घर में सेक्स समेत किसी भी प्रकार के प्रश्न पूछने पर उस पर किसी प्रकार की पाबंदी नहीं है, तो समझिये आपने किला फतह कर लिया है। हाँ, बच्चों से इस बारे में बात करते हुए कभी भी अपना उदाहरण नहीं देना चाहिये।

सेक्स संबंधी बातचीत में बच्चों को विशेष तौर पर `सेफ़ सेक्स' के बारे में बताना ज़रूरी है कि सेफ़ सेक्स का अर्थ एचआईवी तथा अन्य सेक्स संबंधित संक्रामक रोगों से बचाव है। इस संबंध में इन रोगों से संबंधित जानकारी भी दे देनी चाहिये और इस संबंध में कंडोम की भूमिका का खुलासा भी कर देना चाहिये। लगे हाथ बच्चों, विशेषकर लड़कियों के साथ की जाने वाली बातचीत में इस बात पर भी बल दिया जाना चाहिये कि यह धारणा गलत है कि पहली बार यौन संबंध बनाने पर गर्भ ठहरने की संभावना नहीं रहती। इस संबंध में भी कंडोम और गर्भ निरोधक गोलियों की भूमिका पर पर्याप्त प्रकाश डालना बेहतर रहता है। इसके अतिरिक्त, बच्चों को बताएँ कि परस्पर स्नेह और प्रेम दर्शाने का एकमात्र तरीका सेक्स ही नहीं है बल्कि और भी बहुत से तरीके हैं।

यौन शिक्षा के साथ-साथ सेक्स से जुड़ी मान्यताओं (वेल्यूज़) और अपनी संस्कृति से भी बच्चों को अवगत करवाना ज़रूरी रहता है। बच्चे इन पर चाहे अमल ना करें, किंतु उन्हें इनके बारे में जानकारी तो रहेगी, जिसका उनकी जिंदगी पर पर्याप्त असर रहेगा।