Saturday, September 4, 2010

ये शहर है !

चाँद दिखता नहीं
सूर्य समय से पहले आता है ,
उंधता हर कोई
पर चलता रहता है
ये शहर है
जगह नहीं है
पर जगह बनाना है
दूर नहीं है
पर दूर तक जाना है
ये शहर है
कोई रिश्ता नहीं है
पर नामकरण होता है
दिल मिले न सही
पर मिलने का ढोंग होता है
ये शहर है
हर कोई अपना है
जब तक न कोई दुर्घटना है
जब कोई दुर्घटना है
ना कोई अपना है
ये शहर है
रोज रिश्ते बनते है बिगड़ते हैं
भाई भाई आपस में लड़ते हैं
फिर भी अपनेपन का ढोंग रचाते हैं
वही करते हैं
जिससे रिश्ते बनते और बिगड़ते हैं
ये शहर है

2 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

शहर को अलग ही अंदाज़ से देखा और कहा है ...

मन के एहसास खूब लिखे हैं ...

कमेंट्स की सेटिंग से एओर्द वेरिफिकेशन हटा दें तो लोगों को टिप्पणी करना सरल हो जायेगा ..

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा!