Thursday, September 4, 2008

आ जाओ...

एक दिन बाज़ार से एक कमीज़ लाया था तुमने ,
तुम्हारी यादों के धडकनों से उसकी जेब फट गयी,
शाम आ कर सिल जाओ उसे, फेंकने के पहले
एक रोज मेरे दिल पर अपने प्यार के बीज फेंके थे तुमने ,
अब उनपर तुम्हारे यादों से महकती कलियाँ खिली हैं ,
किसी रोज आकर देख जाओ , पतझड़ आने के पहले
एक दफा स्वेटर बुना था मेरे लिए तुमने ,
आज ये रुत कुछ सर्द सी हो गयी है ,
आ कर मफलर ही पहना जाओ , ठंड लगने के पहले
एक बार अपने गाँव के कुंये पर गुड खिला पानी पिलाया था तुमने,
अब कई बरसों से मुंह सुखा जा रहा है ,
आ कर पानी ही दे जाओ , दम घुटने के पहले
एक शाम घुटने के दर्द को फाये से सहलाया था तुमने,
आज वहाँ एक ज़ख्म भर आया है,
फ़िर आ उसे छू जाओ , मवाद आने के पहलेएक वक्त दफ्तर के समय नाश्ता बनाया था तुमने ,तब से बिन चाय के ही चला जाता हूँ ,किसी सुबह आ चुल्हा जला जाओ, रिटायर होने के पहले

1 comment:

Unknown said...

अन्धकार

यह आता सबके जीवन में ,
सबको बहुत बैर है इससे ,
जिसकी जिन्दगी में आया ,
समझो दुःख उसके लिए लाया ,
पर क्यों ? क्यों हम सब डरते है,
पर गज़ब है , देखकर कहती हूँ मै
अगर आज अन्धकार है तो कल ,
होगा उजाला भी,
जो हमें देगा बहुत से फल.................................!!!!!!!