सड़कों पर पड़े लोथड़ों मेंढूँढ रहा फिरदौस है जो,सौ दस्त, हज़ार बाजुओं पेलिख गया अजनबी धौंस है जो,आँखों की काँच कौड़ियों मेंभर गया लिपलिपा रोष है जो,ईमां तजकर, रज कर, सज करनिकला लिए मुर्दा जोश है जो,बेहोश है वो!!!!ओ गाफ़िल!जान इंसान है क्या,अल्लाह है क्या, भगवान है क्या,कहते मुसल्लम ईमान किसे,पाक दीन इस्लाम किसे,दोजख है कहाँ, जन्नत है कहाँ,उल्फत है क्या, नफ़रत है कहाँ,कहें कुफ़्र किसे, काफ़िर है कौन,रब के मनसब हाज़िर है कौन,गीता, कुरान का मूल है क्या,तू जान कि तेरी भूल है क्या!!!!सबसे मीठी जुबान है जो,है तेरी, तू अंजान है क्यों?उसमें तू रचे इंतकाम है क्यों?पल शांत बैठ, यह सोच ज़रा,लहू लेकर भी तेरा दिल न भरा,सुन सन्नाटे की सरगोशी,अब तो जग, तज दे बेहोशी,अब तो जग, तज दे बेहोशी।
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