Saturday, October 17, 2015

याद है मुझे


वो कॉलेज के दिन
अधपकी जवानी
शैतानियों का मौसम
याद है मुझे।

वो नए-नए दोस्त
 नया-नया कैंपस
 लड़कियों से मिलना
 याद है मुझे।

वो कैंटीन में साथ जाना
इलायची चाय मंगाना
पैसे पर उलझ जाना
याद है मुझे।

वो उनसे निगाहों का मिलना
दिल में इश्क-कली खिलना
पक्का आशिक बन जाना
याद है मुझे।

वो साथ में फ़िल्में देखना
करना मिलने का बहाना
वो सारी कसमें खाना
याद है मुझे।

वो हम दोनों का बिछड़ना
घुट-घुट के रोज मरना
दर्द में आंहें भरना
याद है मुझे।

वो इस तरह दिल का टूटना
प्राण-प्रिय का साथ छूटना
अधूरे प्यार की पूरी कहानी
याद है मुझे।

Tuesday, January 13, 2015

आंखों से गिरते आंसू करते है ये सवाल,
 हमसे जो छीनी गई है उस हंसी की बात हो|
रोज वो शब कितना हसीं लगते है रंगे इश्क में,
इश्क में डूबे रहे और आशिकी की बात हो |

Thursday, December 4, 2014

तीर - लालटेन

      

           

                  तीर - लालटेन


बड़का-छोटका भाई में,
डील कोई करावल गईल,
तरकस में ना तीर अब,
लालटेन में रखावल गईल।

जनता बा कन्फयूज भईल,
कुछ उनका ना बुझाईल,
रहे जे बाड़का दुश्मन,
यार अब कहावल गईल।

पारा बनके चारा खा गईल
उ सरकार हटावल गईल,
चलाके ब्रहम तीर के
लालटेन के बुतावल गईल।

चोर डकईत के तमगा से
जिनका के तमगाावल गईल,
दस साल पानी पी पी के
जिनका के गरियावल गईल।

समय पड़ल त ओही चोर के
गरवा से लगावल गईल,
होला चोर चोर मौसेरा भाई,
दुनिया के बतावल गईल।

कहेे लव पुरबिया दुख से
एकर दुख ना कि गेठ जोरावल गईल,
दुख त एकर बा की,
जनता के फेर बुड़बक बनावल गईल।

- लव कान्त सिंह

Saturday, February 22, 2014

बंद पिंजरा

जो मिट्टी अब तक भूरी थी
वो अब लाल हो गयी
आज मैंने
क़त्ल किया है,
अपनी मुहब्बत से नहीं
तिजारत से भी नहीं
बस इतना कहा
मत उलझो मेरे ताने-बानों में, मत फँसो मेरे ज़ंजीरों में,
मत बनो कठपुतली मेरे सपनों की
आज़ाद कर दिया आसमान जैसे पिंजरे से
 |

Saturday, August 3, 2013

बदबख्त ‘राय’ सिर्फ तू रह गया

बदबख्त ‘राय’ सिर्फ तू रह गया
तेरी ज़िंदगी में कितने मुल्क आज़ाद हुए,
कितनी नई कौमें ,मुल्क अस्तित्व में आए |


क्रांति के दौर में ,
क्लर्क ,मंत्री ,राजदूत,सिपाही-जरनैल करनैल बन गए |
बदबख्त तेरी इतनी उम्र गुजर गई ,
तुझे ख़बर न हुई ,
दुनिया कहाँ से कहाँ पहुँच गई |
आखिर तू इतना अरसा
क्या करता रहा है ?
इस ज़माने में भी भूखा सोता रहा है ?
ठेके ,परमिट ,लाईसेंस नीलामी
लॉटरी ,एलाटमेंट वजीफे के दौर में ,
पता नहीं तू किस खोह में छिपा रह गया |
आख़िरी आदमी भी सुकून की नींद सोया,
बदबख्त ‘राय’ सिर्फ अपनी कमजोरियों के कारण ,
सिर्फ रोता ही रह गया |


Friday, October 26, 2012

कैसी है ये वेदना


कैसी है ये वेदना 
लील रही है मेरी चेतना
पूरब से चढ़ते सूरज में
अवशोषित मेरी ऊष्मा
मुगलों की राजधानी में तुम्हे सहलाती तो होगी
प्रवासी पक्षी भी तुम्हे मेरा हाल कहते तो होंगे
ठिठके से भाव सिसकती संवेदना
ये 'सूरज' की गेंद से 'पवन' साथ मेरा खेलना
देखो मेरे त्रास से तुम्हारा ये अम्बर लाल है
मेरा बहुत बेहाल है
तुम कहाँ हो प्रिये .....

भोर देखी ना सांझ, खुशियाँ हुई बाँझ
बार बार पुकारता हूँ
तुम्हारे पास न होने को नकारता हूँ
होठ सूखे चले जाते हैं, नीर बहे चले जाते हैं
तुम कहाँ हो प्रिये ......

तुमने भी बहुत बहा लिया काजल
बहुत बरस लिए धनीभूत बादल
दहका लिए तन –मन
विरह वेदन बढ़ रहा अब “राय” का
मन हो रहा घायल
तुम कहाँ हो प्रिये .....

नित दिन बाट जोता हूँ, हर घाट घूमता हूँ
तुम्हे खोजता हूँ
धुन सी है तुम्हारी
तुम कहाँ हो प्रिये ...

आज पहला मौका था

आज पहला मौका था 
जब मैं तौली गयी मानव मस्तिष्क की तराजू पर 
थोड़ी सी झिझक 
पर मन में खुशी 
बंधन तो खुशियाँ ही देता है आज जाना 
अपने आप को पहचाना 
रिश्तों की गुलामी में आजाद मन से
अपने को जाना और को भी पहचाना
अच्छा लगा रिश्तों की कसौटी पर
संतुलन पर टिक पाना , संतुलन पर टिक पाना |