Saturday, September 27, 2008

मेरे घर चलोगे

वहाँ कोने में अकेला खड़ा है
मेरा बल्ला और कब से खपरैल पर अटकी पड़ी है भाई की गेंद
घर चलो उसे उतारेंगे,
बहलेगा वही मेरे पड़ोस में फिरता है
एक पोटली वाला उसने अपने बोरे में छुपा के रखे है
कितने बचपन घर चलो
उससे थोड़ी कविता उधार मांग आएंगे वहीं रास्ते में जो पड़ता है
बूढ़ा पीपल उसके नीचे दिन भर सोयी रहती
है रात घर चलो उसे जगाकर पूछेंगे चाँद का पता तुम कह रह थे
कल-बड़ी गर्मी है यहाँ ?
वहाँ भी सर्दियों में भी बर्फ नहीं
पड़ती कभी शायद अभी भी पत्तों पर गिरती हो
ओस घर चलोअंगुलिओं पर मोती का फिसलना देखेंगेयहाँ चुभता है
सूरज बहुतघर
माँ ने रोशनदान में थोड़ी धूप छुपा रखी
है बोलो ना, मेरे घर चलोगे?

1 comment:

mark rai said...

वहाँ भी सर्दियों में भी बर्फ नहीं
पड़ती कभी शायद अभी भी पत्तों पर गिरती हो
bahut sundar, plz remove word verification .