Sunday, December 26, 2010

शब्द देश के नाम ....

स्वप्न देखा था कभी जो आज हर धड़कन में है
एक नया भारत बनाने का इरादा मन में है
एक नया भारत, कि जिसमे एक नया विश्वास हो
जिसकी आँखों में चमक हो, एक नया उल्लास हो
हो जहाँ सन्मान हर एक जाति, हर एक धर्म का
सब समर्पित हो जिसे, वह लक्ष्य जिसके पास हो
एक नया अभियान अपने देश पर जन - जन में है
एक नया भारत बनाने का इरादा मन में है
बढ़ रहे हेई हम प्रगति की ओर, जिस रफ्तार से
कर रहा हमको नमन, यह विश्व भी उस पार से
पर अधूरी है विजय जब तक गरीबी है यहाँ
मुक्त करना है हमें अब देश को इस भार से
एक नया संकल्प सा अब तो यहाँ जीवन में है
एक नया भारत बनाने का इरादा मन में है
भूख जो जड़ से मिटा दे, वह उगाना है हमें
प्यास ना बाकी रहे, वह जल बहाना है हमें
जो प्रगति से जोड़ दे, ऐसी सड़क ही चाहिए
देश सारा गा सके वह गीत गाना है हमें
एक नया संगीत देखो आज तो कण कण में है
एक नया भारत बनाने का इरादा मन में

Tuesday, December 21, 2010

लम्हा भर की मुस्कराहट ...........

लम्हा भर की
मुस्कुराहट
और जिंदगी
भर का रोना ,
गरीबी ही
मेरी
अब तो हे
ओड़ना और बिछोना ,
आंसुओं में
भिगोके
जिंदगी को
क्यूँ यूँ
डुबोता हे
उठ चल
आगे चल
देख ले
जिंदगी में
तेरे कोशिश करे
तो बस
सामने हे
सोना ही सोना ।
हिला हाथ
उठ ज़मीं से
उठा ले
ज़मीं पर
पढ़ा यह सोना
वरना
पढ़ा पढ़ा
कोसता रह
अपनी किस्मत को
के जिंदगी में
तेरे हे
रोना ही रोना
होसलों को
बना पंख
एक उड़ान तो भर
फिर देख ले
जो चाहेगा
वही होगा
ओढना तेरा
वही होगा बिछोना तेरा ।

Monday, December 13, 2010

दो टूक!

आज मेरे दोस्तों ने ही मुझे तन्हा बना दिया ,
हम अच्छे थे पर उन्होंने बुरा बना दिया ,
खैर हमें उनसे कोई शिकवा गिला नहीं
क्योंकि उन्होंने मुझसे मेरा परिचय करा दिया |

पवन गुप्ता जी के कलम से .....

हर तरफ़ है अंधेरा
मैं अंधा तो नहीं ।
करता हूँ तेरी ही पूजा
तू रब का बंदा तो नहीं ।

फ़िरता हूँ तेरी ही तलाश में ,
मैं मुसाफ़िर तो नहीं ।
रब‍‍ से माँगता हूँ तेरी ही भीख़
मैं फ़कीर तो नहीं ।

हर चेहरे पर तेरा चेहरा दिख़े
मैं दिवाना तो नही ।
बस तलाश है तेरे प्यार की
मैं परवाना तो नही ।


फ़ूलों से करता हूँ तेरी ही बातें
मैं भँवरा तो नहीं ।
भटकता हूँ तेरी ही याद में
मैं आवारा तो नहीं ।

हर बात से ड़रता हूँ मैं
मैं कारयर तो नहीं ।
बिना सोचे ही चलती है यह कलम
मैं शायर तो नहीं ।

Wednesday, December 1, 2010

दिल की पीड़ा !

ढूढता है दिल उनका पता ,जो रात सपने में आये
ललसायी आँखों में मुरझाये स्वप्न लिए ,
पूछा मुझसे क्या जगह दोगे अपने दिल में .
घबराया मैं अंतर मन में ,
स्वप्न है या हकीक़त मेरे मन में ,
बदन में है तब से सिहरन ,
सुबह हुई हम तार तार हो गए ,
उनकी याद में हम बेकरार हो गए ,
अगली रात एक नवयावाना मेरे सपने में आई ..........

Thursday, November 4, 2010

नारी

स्‍वतंत्र हूँ, पर सहमी, सहमी!
समान हूँ, पर सहमी, सहमी!

त्रेता में झाँका, तो सीता खड़ी वहाँ निहार रही है
एकटक; टस से मस होने नहीं देती आदर्शों से है
ढकेल देती है बरबस वह ‘आर्यपुत्र’ के पीछे-पीछे
जाने कहाँ चली जाती है पुरुषों की उफनाती गरमी
स्‍वतंत्र हूँ, पर सहमी, सहमी!

द्वापर में जाऊँ, गांधारी चक्षु पर पट्टी धरती है
बेची जाने पर भी पांचाली की सती-शिक्षा चलती है
सिखलाती दो युग की हैं सतियाँ मुझको खुद सहतीं-सहतीं
जाने कहाँ-कहाँ से आई पुरुषों की निष्‍कर्मी नरमी
स्‍वतंत्र हूँ, पर सहमी, सहमी।

जानूँ मैं, अपराध नहीं सीता का, वह युग ऐसा था
यह भी मानूँ, द्वापर भी सतियों का अपना एक समय था
युग बदला, बदले हैं युग के मूल्‍य, प्राण ना रहे रूढ़ि में
जाने कब तक बना रहेगा समाज यह मानव का जुल्‍मी
स्‍वतंत्र हूँ, पर सहमी, सहमी।

गृहसूत्रों को पढ़ बतलाते, देखो! है यह स्‍त्री-मर्यादा
धर्मसूत्र पुष्‍टि करते हैं और कड़ी करके मर्यादा
दोष नहीं उनका, वे थे अपने युग-मूल्‍यों के ही पोषक
जाने क्‍यों ये लाद रहे फिर उस युग को हम पर सब मरमी
स्‍वतंत्र हूँ, पर सहमी, सहमी।

Saturday, September 4, 2010

ये शहर है !

चाँद दिखता नहीं
सूर्य समय से पहले आता है ,
उंधता हर कोई
पर चलता रहता है
ये शहर है
जगह नहीं है
पर जगह बनाना है
दूर नहीं है
पर दूर तक जाना है
ये शहर है
कोई रिश्ता नहीं है
पर नामकरण होता है
दिल मिले न सही
पर मिलने का ढोंग होता है
ये शहर है
हर कोई अपना है
जब तक न कोई दुर्घटना है
जब कोई दुर्घटना है
ना कोई अपना है
ये शहर है
रोज रिश्ते बनते है बिगड़ते हैं
भाई भाई आपस में लड़ते हैं
फिर भी अपनेपन का ढोंग रचाते हैं
वही करते हैं
जिससे रिश्ते बनते और बिगड़ते हैं
ये शहर है

Tuesday, August 31, 2010

काश! मैं कोई परिंदा होता

काश! मैं कोई परिंदा होता
बहुत सी शाखाओं पर
बैठता
इतराता
गीत गाता
रिमझिम बरसात में
पंख भिगोता
पिहू-पिहू करता
बच्‍चों के हाथ न आता
फर्र से उड़ जाता
नदिया-नाले पार करता
पहाड़ों पर उड़ान भरता
ढूंढ ही लेता आश्रय अपना
कर लेता साकार
प्रकृति पाने का सपना।
दुनिया मेरी होती निराली
नहीं कोई देता
धर्म की गाली
अजान कर लेता
कहीं भी
किसी दर माथा
टिका देता
श्रद्धा रखता
मन में जीवित
मजहब के ताने
कपूर बना देता
हज करने की इच्‍छा है
मगर वो
मेरा देश नहीं है
गुरुद्वारे में सेवा
के लिए
सिर पर
पगड़ी
केश नहीं है।

उस दिन भी तो जलाई गई थी
एक मोटर-गाड़ी
पति और बच्‍चों के शव
देखती रह गई थी अबला बेचारी
इंसानी जुनून कैसे कोई माने
यह तो थी
धर्म के नाम पर
दानवी चिंगारी
आग की ताकत से अनजान
तमाशा
देख झूम रही थी
भीड़ सा॥

काश।! उस भीड़ में से
दो-चार परिंदे बन जाते
पहुंच जाते बादलों के पार
सारे नभ से जल भर लाते
मगर वहां तो सब इंसान(?) थे
डरपोक
कायर
उनमें कहां परिंदों जैसा प्‍यार निर्मल
उनमें कहां वो प्रेम का बहता जल
वो तो एक दूसरे को छलना जानते हैं
नहीं हो पाता और कुछ
मासूमियत का कत्‍ल कर डालते हैं।

आएगा कहीं दूर आकाश से
जब कोई परिंदा मुझसे मिलने
पूछूंगा
मानवीय जमीन का पता
जानता हूं
नहीं बता पाएगा
प्रतीक्षा करुंगा
अगले जनम की
फिर बनकर आऊंगा
एक परिंदा
शाखाओं पर फुदकूंगा
इतराऊंगा
मुस्‍कराऊंगा
इस दुनिया
के भविष्‍य को
प्‍यार से भरे
मीठे गीत सुनाऊंगा।

Friday, March 26, 2010

हाँ कर दे !

कभी चाहते थे इतना कि हम उनके दिल-ए-अजीज़ थे ।
आज देखना भी गवारा नहीं करते ।।
हमसे क्या हुई ख़ता इतना तो बता दे ।
रहमत होगी अगर तू पास आये ।।
मैं हर मुिश्कल से लड़ लेता ।
तुम अगर साथ देते ।।
ऐ दोस्त आजा तू एक बार ।
स्ुना सुना सा है दिल मेरा ।।
बस कह दे तू हाँ मेरे यार एक बार ।
दूर ही सही कि तू मेरे पास है ।।
हवाएं ले आयेंगी तेरी खुश्बू ।
बस एक बार तू हाँ कर दे ।।।

Monday, March 22, 2010

ये बड़ो की बात है जी

बड़े लोगों की होती है बड़ी बातें।
छोटा तो दिन में भी
छोटी शर्म का काम करते भी घबड़ाये
बड़ा आदमी गरियाता है
गुजारकर बेशर्म रातें।।
———-
छोटे आदमी की रुचि
फांसी पर झूले
या लजा तालाब में डूबे
बड़ा आदमी अपनी रातें गरम कर
कुचलता है कलियां
फिर झूठी हमदर्दी जताये।
बड़े आदमी की विलासता भी
लगाती उसके पद पर ऊंचे पाये।
———
हर जगह बड़े आदमी की शिकायत
बरसों तक कागजों के ढेर के नीचे
दबी पड़ी है।
छोटे की हाय भी
उसके बीच में इंसाफ की उम्मीद लिये
जिंदा होकर सांसें अड़ी है।
बड़े लोग हो गये बेवफा
पर समय की ताकत के आगे
हारता है हर कोई
हाय छोटी है तो क्या
इंसाफ की उसकी उम्मीद बड़ी है।

Tuesday, March 9, 2010

बचपन

चंचल, बोधरहित, मनभावन, सहज, सरल, मन ऊपवानास्वथा
प्रेम जागृत कर जाये, कितना प्यारा बचपन
रंच मात्र का लोभ नहीं, ना राग - द्वेष की बातें
मस्ती का वह जीवन बीता, बाकी केवल यादें
वो क्षण भर,मन का रूठना, अगले पल ही धूम मचाना
जटिल बड़ा लगता अब सबकुछ, वो सामर्थ्य नहीं, पहचाना
वो भूल कोई कर, डर, माँ के आँचल छिप जानाकिताना
साहस भर जाता था, वो स्नेह शरण का पाना
बचपन की वो हंसी ठिठोली, ख्वाबो की मुक्त उडानें
आज बंधा सा लगता जीवन, बचपन क्या, अब जानें
काश यदि होता संभव, वक़्त को, उल्टे पैर चलाना
जग जीवन से, राहत कितना, देता बचपन का आना

Thursday, March 4, 2010

देश के लिए कुछ समय दे .....

जय भारत की कल्पना तभी की जा सकती है जब हमें अपने अतीत को ध्यान में रखा जाये । और उसे हम यानि मैं और आप । तो क्या आप तैयार है देश के विकास में योगदान देने की लिए । तो अपने विचारो को लिखे । शिवेन्दु राय

Saturday, February 13, 2010

डा. सुनील जोगी के एक बहुत चर्चित कविता

मुश्किल है अपना मेल प्रिये ये प्‍यार नहीं है खेल प्रिये
तुम एम.ए. फर्स्‍ट डिवीजन हो मैं हुआ मैट्रिक फेल प्रिये

तुम फौजी अफसर की बेटी मैं तो किसान का बेटा हूं
तुम रबडी खीर मलाई हो मैं तो सत्‍तू सपरेटा हूं
तुम ए.सी. घर में रहती हो मैं पेड. के नीचे लेटा हूं
तुम नई मारूति लगती हो मैं स्‍कूटर लम्‍ब्रेटा हूं
इस तरह अगर हम छुप छुप कर आपस में प्‍यार बढाएंगे
तो एक रोज तेरे डैडी अमरीश पुरी बन जाएंगे
सब हड्डी पसली तोड. मुझे भिजवा देंगे वो जेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये ये प्‍यार नहीं है खेल प्रिये




तुम अरब देश की घोडी हो मैं हूं गदहे की नाल प्रिये
तुम दीवाली का बोनस हो मैं भूखों की हड.ताल प्रिये
तुम हीरे जडी तस्‍तरी हो मैं एल्‍युमिनियम का थाल प्रिये
तुम चिकेन, सूप, बिरयानी हो मैं कंकड. वाली दाल प्रिये
तुम हिरन चौकडी भरती हो मैं हूं कछुए की चाल प्रिये
तुम चन्‍दन वन की लकडी हो मैं हूं बबूल की छाल प्रिये
मैं पके आम सा लटका हूं मत मारो मुझे गुलेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये ये प्‍यार नहीं है खेल प्रिये

मैं शनिदेव जैसा कुरूप तुम कोमल कंचन काया हो
मैं तन से, मन से कांशी हूं तुम महाचंचला माया हो
तुम निर्मल पावन गंगा हो मैं जलता हुआ पतंगा हूं
तुम राजघाट का शांति मार्च मैं हिन्‍दू-मुस्लिम दंगा हूं
तुम हो पूनम का ताजमहल मैं काली गुफा अजन्‍ता की
तुम हो वरदान विधाता का मैं गलती हूं भगवन्‍ता की
तुम जेट विमान की शोभा हो मैं बस की ठेलमपेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये ये प्‍यार नहीं है खेल प्रिये







तुम नई विदेशी मिक्‍सी हो मैं पत्‍थर का सिलबट्टा हूं
तुम ए.के. सैंतालिस जैसी मैं तो इक देसी कट्टा हूं
तुम चतुर राबडी देवी सी मैं भोला-भाला लालू हूं
तुम मुक्‍त शेरनी जंगल की मैं चिडि.याघर का भालू हूं
तुम व्‍यस्‍त सोनिया गांधी सी मैं वी.पी. सिंह सा खाली हूं
तुम हंसी माधुरी दीक्षित की मैं पुलिस मैन की गाली हूं
गर जेल मुझे हो जाए तो दिलवा देना तुम बेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये ये प्‍यार नहीं है खेल प्रिये

मैं ढाबे के ढांचे जैसा तुम पांच सितारा होटल हो
मैं महुए का देसी ठर्रा तुम चित्रहार का मधुर गीत
मैं कृषि दर्शन की झाडी हूं मैं विश्‍व सुंदरी सी महान
मैं ठेलिया छाप कबाडी हूं तुम सोनी का मोबाइल हूं
मैं टेलीफोन वाला चोंगा तुम मछली मानसरोवर की
मैं सागर तट का हूं घोंघा दस मंजिल से गिर जाउंगा
मत आगे मुझे ढकेल प्रिये मुश्किल है अपना मेल प्रिये ये प्‍यार नहीं है खेल प्रिये

तुम जयप्रदा की साडी हो


मैं शेखर वाली दाढी हूं तुम सुषमा जैसी विदुषी हो
मैं लल्‍लू लाल अनाडी हूं तुम जया जेटली सी कोमल
मैं सिंह मुलायम सा कठोर मैं हेमा मालिनी सी सुंदर
मैं बंगारू की तरह बोर तुम सत्‍ता की महारानी हो
मैं विपक्ष की लाचारी हूं तुम हो ममता जयललिता सी
मैं क्‍वारा अटल बिहारी हूं तुम संसद की सुंदरता हो
मैं हूं तिहाड. की जेल प्रिये मुश्किल है अपना मेल प्रिये
ये प्‍यार नहीं है खेल प्रिये

………………………

Saturday, February 6, 2010

छवि और भय

कह डालने से क्यों डरते हो?
क्यों स्थगित करते हो
आज को कल पर
तब कि जब
माँजते थे रकाबियाँ
गंदे और सड़े होटल में
और देखते थे ख्वाब
कि जब होऊँगा कदवान
कह जाऊँगा सब कुछ...

अब कि जब
परछाईं भी बताती है
पाँच-फुटा तो हो ही
पर अब तुम्हें
कह जाने के लिए
ताड़-सा कद चाहिए...

नहीं-नहीं कद तो बहाना है
असल में तुम कायर हो
और अपनी छवि से भयभीत हो...

अपनी छवि जो बसी है
तुम्हारी अपनी ऑंखों में
कह जाने से वह दरकेगी
वह दरक भी सकती है
इस संभावना मात्र से
तुम काँप उठते हो...

उबरो अपनी छवि के मायावी घेरे से
कल कि जब निश्चित ही
होगा तुम्हारा तिया-पाँचा
क्यों नहीं अपने हाथों
चीर डालते अपना हृदय...

क्यों नहीं फोड़ते वह ठीकरा
जिसमें भरी हैं
सड़कर बजबजातीं
मिठास-भरी पूर्व-स्मृतियाँ...

कि जैसे हगना-मूतना स्वाभाविक है
ठीक वैसे ही
भीतर भरी काली इच्छाएँ
उत्सर्जित होनी चाहिए...

और फिर पूरी संभावना है
कि उस गटर-गंगा में
मिल जाए एकाध मोती
जो किसी के तो क्या
शायद तुम्हारे ही काम आ जाए...

चेतो कि अपनी गढ़ी छवियों से
डरने वाले लोग
निश्चय ही मारे जाएँगे
और जिएँगे वे अनंतकाल तक
जो अपनी छवि को फिर-फिर
तोड़ेंगे और लगातार तोड़ते रहेंगे...

Saturday, January 16, 2010

डूबता सूरज बिम्ब

कांच चुभा
लहू गिरा जहा
वहा एक गुल खिला
सुर्ख लाल था उसका रंग
और पंखुडियां
सारी पारदर्शक
कांच के जैसी
=========
किनारे पर गिरी सीपियाँ
अन्थाग सागर समर्पित दोबारा
जब हम
वापस आये
उन में मोती हो
=========
डूबता सूरज बिम्ब
क्षितिज पे अपनी
छटाये छोडता जा रहा
उसके अस्तित्व का प्रमाण
ताकी कल फिर आना है
ये उसे याद रहे …

कुछ हो गया

ये क्या हुआ, कुछ हो गया है
बदली फिजा है, बदली है दुनिया
धुप में सर्दी, रातें हैं गर्म
ये क्या हुआ, कुछ हो गया है !

भूलने लगा हूँ मैं अब सब कुछ क्यूँ
नींद में भी क्यूँ चलने लगा हूँ
हर वक़्त खुद को तकने लगा
ये क्या हुआ, कुछ हो गया है !

हर वक़्त लगते हो साथ तुम क्यूँ
बंद आँखों को दिखते हो तुम क्यूँ
रोज सपनों में आते हो तुम क्यूँ
ये क्या हुआ, कुछ हो गया है !

बिन वजह में क्यूँ मुस्कुराता हूँ
सोचते सोचते क्यूँ हँसता हूँ
बैठे बैठे क्यूँ गुम होता हूँ
ये क्या हुआ, कुछ हो गया है !

जब से मिले तुम, बदली है ज़िन्दगी
हर ख़ुशी अब लगती है अपनी
जो ना सोचा था वो हुआ है
जाने क्यूँ हमारा मिलन हुआ
एक दूजे के हो गए अब हम
ये क्या हुआ, कुछ हो गया है !

Tuesday, January 12, 2010

हमारे समाज में सेक्स के बारे में या उससे संबंधित विषयों पर खुलकर बातचीत करना सामान्य रूप से अच्छा नहीं माना जाता। ऐसे वातावरण में पले-बढ़े अभिभावक भी अपने बच्चों से इस विषय पर बातचीत करने में कतराते हैं, जबकि यह आज के समय की माँग है। विद्यालयों में यौन-शिक्षा की आवश्यकता पर जो बल दिया जा रहा है, उसका प्रथम चरण घर में अभिभावकों द्वारा ही उठाया जाना चाहिये। किंतु होता यह है कि झिझक, शर्म और इस विषय पर बात करने पर होने वाली मानसिक असुविधा के चलते अधिकांश माँ-बाप इस बारे में कन्नी काट जाते हैं। उनका तर्क होता है कि समय आने पर बच्चे अपने आप सब जान जाते हैं। किंतु वे भूल जाते हैं कि आज के समय में बच्चों को यौन शिक्षा से वंचित रखना- उनके लिए कितना बड़ा खतरा मोल लेना है।

आवश्यक है कि अभिभावक अपने बच्चों के लिए ऐसा सहज वातावरण बनायें कि वे सभी तरह की (यौन संबंधी भी) जिज्ञासाएँ शांत करते हेतु उनके समक्ष अपने प्रश्न रख सकें। इस बारे में किये गये अध्ययन से पता चला है कि जिन बच्चों के अभिभावक उनसे खुलकर बातचीत करते हैं और उनकी बातें ध्यानपूर्वक सुनते हैं, ऐसे बच्चे ही सेक्स संबंधी बातें अपने अभिभावकों से कर पाते हैं। ऐसे बच्चे किशोरावस्था में यौन-खतरों से भी कम दो-चार होते हैं, बनिस्बत दूसरे बच्चों के।

अगर, बच्चों से इस संबंध में बातचीत करने में असुविधा महसूस हो रही हो तो इस संबंध में किया गया अध्ययन, विश्वसनीय दोस्तों अथवा चिकित्सक से की गई चर्चा इत्यादि काफी सहायक हो सकते हैं। इस विषय में जितना आपके ज्ञान में इज़ाफा होगा, उतनी ही सहजता से आप बच्चे से बात कर पायेंगे। अगर आप इस बारे में सहज नहीं हो पा रहे हैं तो इस स्थिति को भी बच्चे से छिपाइये मत, बल्कि कहा जा सकता है कि- `देखो! मेरे माता-पिता ने मुझसे कभी सेक्स के बारे में बातचीत नहीं की। शायद इसीलिए मैं भी सहज रूप से तुमसे इस बारे में बात नहीं कर पा रहा/रही हूँ। लेकिन मैं चाहता/चाहती हूँ कि हम इस बारे में बात करें, बल्कि सभी विषयों पर खुलकर बात करें। अत किसी भी प्रकार की जिज्ञासा हो तो बेझिझक मुझसे चर्चा की जा सकती है।'

इस संबंध में बच्चों से जितनी कम उम्र में बातचीत शुरू की जा सके- बेहतर है, और वह भी अत्यंत सहज रूप से और अधिक से अधिक जानकारी देने के हिसाब से। जैसे कि छोटे से बच्चे को जब बातचीत के माध्यम से शरीर के अन्य अंगों-नाक-कान-आँख इत्यादि की जानकारी दी जाती है तो उसी वक्त साथ-साथ उसके गुप्तांगों के बारे में भी जानकारी दे दी जानी चाहये। बच्चे को शरीर के सभी अंगों के वास्तविक नाम बताएँ। बच्चे की बढ़ती उम्र के साथ-साथ उसके शरीर में आने वाले सभी प्रकार के परिवर्तनों से भी उसे अवगत करवाते रहना चाहिये।

इस सबके बावजूद भी अगर आपका बच्चा इस संबंध में अपनी कौतूहल शांत करने के लिए आपके पास नहीं आता है तो बेहतर होगा कि कोई अच्छा-सा मौका देख कर आप ही शुरुआत कर दें। मसलन- अगर उसके किसी दोस्त की माँ गर्भवती है तो आप वहीं से शुरुआत कर सकती हैं- `तुमने देखा! राजू की मम्मी का पेट कितना फूल गया है, क्यूंकि उनके पेट में नन्हा-सा बेबी है। क्या तुम्हें पता है कि बेबी आंटी के पेट में कैसे गया?... '- बस इस तरह बात को आगे बढ़ाया जा सकता है।

आज की आवश्यकता है कि बच्चों को पशु-पक्षियों अथवा परियों इत्यादि की कहानियों के साथ-साथ जीवन से संबंधित तथ्यों से भी अवगत करवाया जाये। इस दिशा में जब हम बच्चों को यौन शिक्षा से जुड़े तथ्यों से अवगत करवाते हैं तो उन्हें यह भी समझाना होगा कि यौन संबंधों में एक-दूसरे की भलाई के बारे में सोचना, परवाह करना तथा उत्तरदायित्व निभाना जैसी बातों का कितना महत्व है? बच्चे से यौन संबंधों के भावनात्मक पहलू पर की गई बातचीत से मिली जानकारी के आधार पर वह भविष्य में सेक्स संबंधों से उत्पन्न किसी भी प्रकार की स्थिति या दबाव में सही निर्णय ले सकेगा।

बच्चों से सेक्स संबंधी बातचीत के दौरान, उन्हें उनकी उम्र के अनुसार जानकारी मुहैया करवानी चाहिये। मसलन 8 वर्षीय बच्चे को बढ़ती उम्र के साथ लड़के और लड़की में आने वाले अलग-अलग शारीरिक परिवर्तनों और कारणों को बताना चाहये कि शरीर में मौजूद हार्मोन्स के कारण ही लड़के और लड़की में अलग-अलग शारीरिक परिवर्तन होते हैं। इससे बच्चे, उम्र के साथ होने वाले शारीरिक परिवर्तनों से घबराएँगे नहीं और ना ही विचलित होंगे। विशेष रूप से किशोरावस्था में बच्चे को यौन क्रिया से जुड़े परिणामों और उत्तरदायित्वों का अहसास करवाना आवश्यक होता है। मसलन 11 से 12 वर्ष के बच्चों के साथ की जाने वाली बातचीत में अवांछित गर्भ और उससे बचाव जैसे मसलों को शामिल करना चाहिये। इसीप्रकार वर्तमान स्थिति के साथ-साथ भविष्य में होने वाले शारीरिक परिवर्तनों पर भी बच्चों के साथ बातचीत की जा सकती है। मसलन 8 वर्षीय बच्ची से मासिक धर्म के बारे में बातचीत की जा सकती है।

कई बार अभिभावक विपरीत सेक्स अर्थात पिता बेटी से तथा माँ बेटे से यौन शिक्षा संबंधी बातचीत करने में सकुचाते हैं। यह सही नहीं हैं। अपनी झिझक को अपने और बच्चे के आड़े मत आने दीजिये। इस बारे में कोई विशेष नियम नहीं है कि पिता ही बेटे से या माँ ही बेटी से इस विषय पर बातचीत करे। जैसा सुभीता हो या बच्चा जिसके अधिक करीब हो, वही उससे इस संबंध में बात कर सकता है।

जेंडर के साथ-साथ इस बात की भी चिंता मत कीजिये कि आप बच्चे की सभी जिज्ञासाओं को शांत कर पाएंगे या नहीं। इस विषय पर आप कितना जानते हैं, से महत्वपूर्ण है कि आप बच्चे को सवालों का जवाब किस तरह से दे रहे हैं? अगर आप बच्चे को यह समझाने में सफल हो जाते हैं कि घर में सेक्स समेत किसी भी प्रकार के प्रश्न पूछने पर उस पर किसी प्रकार की पाबंदी नहीं है, तो समझिये आपने किला फतह कर लिया है। हाँ, बच्चों से इस बारे में बात करते हुए कभी भी अपना उदाहरण नहीं देना चाहिये।

सेक्स संबंधी बातचीत में बच्चों को विशेष तौर पर `सेफ़ सेक्स' के बारे में बताना ज़रूरी है कि सेफ़ सेक्स का अर्थ एचआईवी तथा अन्य सेक्स संबंधित संक्रामक रोगों से बचाव है। इस संबंध में इन रोगों से संबंधित जानकारी भी दे देनी चाहिये और इस संबंध में कंडोम की भूमिका का खुलासा भी कर देना चाहिये। लगे हाथ बच्चों, विशेषकर लड़कियों के साथ की जाने वाली बातचीत में इस बात पर भी बल दिया जाना चाहिये कि यह धारणा गलत है कि पहली बार यौन संबंध बनाने पर गर्भ ठहरने की संभावना नहीं रहती। इस संबंध में भी कंडोम और गर्भ निरोधक गोलियों की भूमिका पर पर्याप्त प्रकाश डालना बेहतर रहता है। इसके अतिरिक्त, बच्चों को बताएँ कि परस्पर स्नेह और प्रेम दर्शाने का एकमात्र तरीका सेक्स ही नहीं है बल्कि और भी बहुत से तरीके हैं।

यौन शिक्षा के साथ-साथ सेक्स से जुड़ी मान्यताओं (वेल्यूज़) और अपनी संस्कृति से भी बच्चों को अवगत करवाना ज़रूरी रहता है। बच्चे इन पर चाहे अमल ना करें, किंतु उन्हें इनके बारे में जानकारी तो रहेगी, जिसका उनकी जिंदगी पर पर्याप्त असर रहेगा।